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मै देश के सपने बुनता हूँ


मै देश के सपने बुनता हूँ

आँख है
पर मै अंधा हूँ
इस जग का ही
मै बंदा हूँ
देख कर भी
चुप रहता हूँ
कपड़े पहने है
पर मै नंगा हूँ
सब कुछ होता
इस जग में
इस तर्ज पर
मै भी जिंदा हूँ
खून है
मगर वो ठंडा है
छेड़खानी
आज कल धंधा है
चुप हूँ मै
तू वो बोलता है
निशब्द हूँ मैं
वो शब्द खोजता हूँ
लाज लुटती है
बस शर्मिन्दा हूँ
ओढ़े मन दाग
बस फिरता हूँ
चमकदार कमीज
मै पहनता हूँ
सीना है
पर मै झुकता हूँ
अन्न में
कंकड़ चुनता हूँ
पेट खाली
पर वो पचता है
इंसानियत
मुझ में क्या ज़िंदा
बोलने के लिये
बोल ढूंढ़ता हूँ
अपनों को ही
मै चुनता हूँ
फिर कहता हूँ
मै देश के सपने बुनता हूँ

एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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