चिड़िया कुछ बोलती है
पत्ते पत्ते डोलती है
चिड़िया कुछ बोलती है
जमा कर खाना जिंदगी का
घोसलों को जोड़ती है
रहनुमा है कोई किसी का
फासले पर वो दौड़ती है
पकड़ ले वो तेरी किस्मत
छुट जाती तो बस रोती है
दर्द रहता है बहता
बिलखते हुये वो कहता
जिसने समझा सब कुछ
ना समझ बस वो नाखुश
पत्ते पत्ते डोलती है
चिड़िया कुछ बोलती है
जमा कर खाना जिंदगी का
घोसलों को जोड़ती है
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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