बात निकले तो
बात निकले तो निकले बस अपने पहड़ों की
रंग बिरंगी उन खुश मिजाज नजरों की
देखे जो भी इसे उसे वो अपना लगे
ऐसे उन अपने बनाने वाले बहारों की
बात निकले तो निकले बस.......
वो हिम की चोटियां हमें बुलाती हैं
वो बलखाती नदियां जी का प्यास बढ़ती हैं
वो चंचल बहती हवायें खींच ले जाये पास उनके
देखो उनको भी तो हमारी याद आती है
बात निकले तो निकले बस.......
वो मिटटी का घर वो मेरा स्वर्ग
टूट फुटकर बुलाता है मुझे आ उसके पास चल
बाँहें फैलाये खड़ा है कितनी वो आत्मीयता से
और कहता है सात रंग खिले यंही से तेरी दुनिया के
बात निकले तो निकले बस.......
दूर मंदिर का घण घण घंटा बजता है
और कहता तेरे देब्तों पितरों का बास यंही रहता है
फिर क्यों पानी और जवानी की तरह तू बहता है
कल कल करता ये व्यर्थ तेरा जीवन क्यों गुजरता है
बात निकले तो निकले बस.......
बात निकले तो निकले बस अपने पहड़ों की
रंग बिरंगी उन खुश मिजाज नजरों की
देखे जो भी इसे उसे वो अपना लगे
ऐसे उन अपने बनाने वाले बहारों की
बात निकले तो निकले बस.......
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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