अपने से हारा लगा
अपने से हारा लगा
दिल ये बेचारा लगा
अपनी ही कमियों का
ये तो मारा लगा
हँसते रहे ये गम तेरे
जले जब सितम मेरे
ना कोई किनार लगा
उस भीड़ कोई ना हमारा लगा
देखती रही राहें
बेचैन मेरी दो निगाहें
अश्कों का ना सहारा मिला
वो समंदर भी खारा लगा
अकेले वो चलते रहे
दो कदम जो थक से गये
अब जाके फुर्सत मिली
जब ये कब्र की मिटटी उड़ी है
अपने से हारा लगा
दिल ये बेचारा लगा
अपनी ही कमियों का
ये तो मारा लगा
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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