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बस अब


बस अब

हम से रूठ गये
जो दिन पीछे छूट गये

ऋतू बेईमानी है
हाय ये झूठी जवानी है

लफ्जों की कहानी है
दुनिया आनी जानी है

खंडहर बोल रहा
जर्जर मुख खोल रहा

कल कल बहता रहा
व्यर्थ गंगा जल रोता रहा

हिमाला पुकारे किसे
उसका अपना सोता रहा

हम से रूठ गये
जो दिन पीछे छूट गये

एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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