जियू मेरु आच बैथि बैथि
कया सोच्न व्हालु
जियू मेरु आच बैथि बैथि
कैकू बाट हेनु व्हालु
कूच आनू व्हालु यख अपरू
कया सोच्न व्हालु
क्द्गा घाम चैई
चैत पूस मंगसिर ऐई गैई
दिन आंदा जांदा रैगे हो
जैकू बाटू हेनु ऊ ना ऐई
कया सोच्न व्हालु
धीर धैर ना इनि उकाल सैर
मेरी जीकोडी मेसै बोल
चल सड़की का बाटा बाटा
मिली जालु मीथे मेरु सैन
कया सोच्न व्हालु
रोटी सगा की पोट्गी
जियुंदगि की ई लपड़ा सपोड़ी
दोई दानी खैरी का मित्रा तेर बिना
मिल ना यख चैन से खै
कया सोच्न व्हालु
कया सोच्न व्हालु
जियू मेरु आच बैथि बैथि
कैकू बाट हेनु व्हालु
कूच आनू व्हालु यख अपरू
कया सोच्न व्हालु
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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