टूटे फूटे छूटे मिटटी के घर
टूटे फूटे छूटे मिटटी के घर
बिछड़े अपनों का कहे दर्द
उजड़े सूखे डाल पहाड़
आवाज लगाये दिल कंहा फिर आज
आँखों से कह गयी वो बहती धार
सूखे खेत खड़े पड़े बंजर गाँव
हरयाली क्यों रूठी है ऐसे
कैकई कोप भवन में बैठी हो जैसे
कौन बने फिर जनक महाराज
चलाये हल सीता जन्में हो बरसात
चकबंदी है एक आस जगाती
पहड़ों की अब गरीब क्रांति कहलाती
आओ मिलकर साथ हँसले गा ले
अपने पहड़ों को फिर स्वर्ग बनलें
टूटे फूटे छूटे मिटटी के घर
बिछड़े अपनों का कहे दर्द
उजाड़े सूखे डाल पहाड़
आवाज लगाये दिल कंहा फिर आज
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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