मेरी मशाल तू जलती रहे
दो शब्द तो बोल नही सकते
दो कदम अपने घर के बहार क्या निकालेंगे
२० साल तक जो सो रहे है
उन्हें अब तुम ही बताओ अब हम कैसे जगायेंगे
हार मान ली वो जीनों ने अपने से
उन्हें कैसे अब हम जीत दिलायेंगे
छोड़ना चाहते है जो खुद को ही खुद से
अब तुम ही बोलो उन्हें कैसे वापस आने को हम समझायेंगे
एक मशाल जला राखी है मैंने अपने आप में
अब लगता है वो भी आकर उसे भी बुझा जायेंगे
अपनों को ही जब अपना इतिहास पता नहीं उस अपने को
किस काली भैंस के आगे जा के अपना बीन बजायेंगे
दो शब्द तो बोल नही सकते
दो कदम अपने घर के बहार क्या निकालेंगे
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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