यंही पर किसी ने
यंही पर किसी ने मुझे आवाज दी थी कभी
जो मेरे कानों से अब भी टकरा रही है
यंही पर किसी ने..........
टूट रहे हैं छूट रहे हैं
पर्वत मेरे वो लूट रहे हैं
कभी बह रही थी वो माध्यम माध्यम
अब उफ़नों का वेग उसने लिया है
जब से हमने उसे बाँध दिया है
यंही पर किसी ने मुझे आवाज दी थी कभी
जो मेरे कानों से अब भी टकरा रही है
यंही पर किसी ने..........
कुछ ना रह जायेगा
देख तो अब भी अगर ना आयेगा
तमाशा गर मै बना जाऊंगा
तेर अस्तित्व भी खो जायेगा
फिर तू खुद को कैसे पायेगा
यंही पर किसी ने मुझे आवाज दी थी कभी
जो मेरे कानों से अब भी टकरा रही है
यंही पर किसी ने..........
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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