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तुम्हरी सोच



तुम्हरी सोच

तुम्हरी सोच जब यहीं पर टिकी है मै क्या करूँ ?
जब वो अपने और अपनों से ही घिरी है ,तो मै क्या करूँ ?
तुम्हरी सोच .......

एक घेरा वो फेरा बांध रखा है तूने अपने से कहीं
साफ़ नहीं है धुंधली है वो तेरी तस्वीर,तो मै क्या करूँ ?
तुम्हरी सोच .......

कदम बढाऊँ या रोक लूँ क्या अजीब सी कश्मकश है तेरी
एक आगे और एक पीछे छूट जा रहा है तेरा तो मै क्या करूँ ?
तुम्हरी सोच .......

फूलों की वो चाहत फिर काँटों से मै क्यों प्यारा करूँ ?
जिंदगी बन कांटा चुबा जा सीने हुआ जा नासूर, तो मै क्या करूँ ?
तुम्हरी सोच .......

स्वर्ग से ये सुंदर तेरी देवभूमि तू जन्मा जब ये धरती
फिर ऐ मुर्ख झोला लेकर तू कहाँ और किस ओर चला, तो मै क्या करूँ ?
तुम्हरी सोच .......

हँसना रोना सब किस्मत में लिखा है कौन बदल सकता है यंहा
फिर क्यों इस जग में तू जन्मा जब तू कुछ नहीं कर सकता है,तो मै क्या करूँ ?
तुम्हरी सोच .......

बातों पे अल्फ़ाज़ों के मरहम का वो टिका अगर मैं ना लगा सका
लिखा मेरा ऐ व्यर्थ है एक पग भी अगर मै ना मोड़ सका,तो मै क्या करूँ ?
तुम्हरी सोच .......

तुम्हरी सोच जब यहीं पर टिकी है मै क्या करूँ ?
जब वो अपने और अपनों से ही घिरी है ,तो मै क्या करूँ ?
तुम्हरी सोच .......

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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