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अब भी



अब भी

एक बूंद गिरी गर्जना से
उथल पुथल धरती कर गयी
हाय अब क्या होगा इस कल्पना से
मन मेरा मुझसे और भयभीत हुआ

क्या बीता था पिछले साल
आँखों में वो तस्वीर अब भी ज़िंदा है
कुरेदता रहता है अक्सर वो मुझे
बांते अब भी वो मुझसे करता है
एक बूंद गिरी गर्जना से
उथल पुथल धरती हुयी..............

अंकांशाओं से घिरा है मन
अकेला है इस कारण डरा है मन
विध्वंस का वो देखा खुला तांडव नाच
विचलित कर देता है मझको अब भी वो आज
एक बूंद गिरी गर्जना से
उथल पुथल धरती कर गयी …………

हर तरफ छाया यंह डर का राज
पहड़ों पर फैला उसका काला सम्राज्य
तत्र सर्वत्र नाश भेद जैसे ध्वनि बजी
कलियुग समाप्ति की अवधि अब है सीमित
एक बूंद गिरी गर्जना से
उथल पुथल धरती कर गयी ..............

बालकृष्ण डी ध्यानी

देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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