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ऐ मोहब्बत



ऐ मोहब्बत

ऐ मोहब्बत तू जरा रोक जा
बैठ पास मेरे तू ,यूँ ना तू उठ के चली जा

जन्नतों से चलकर आ रही है तू
थक गयी होगी आ थोड़ा सुस्ता ले पास मेरे बैठ जा

आँखों ने पड़ी आँखों में वो लिखी भाषा है तू
कोई ना लिख पाये तुझ पर अब तक कैसी अधूरी है तू

जितना तुझ से दूर जाये उतनी याद आती है तू
कहना अगर चाहूँ समीप आते ही तू वो सोच बिखर जाती है क्यों

कोई ना जान पाया कैसे तू आती है इस दिल मे कहां
घर कर जाती है तुम अनजाने में ही क्या ये तुम्हे पता

आ गयी है तू आ सात घोड़ों के आसमानी रंग संग आ
आ साथ मेरे बैठ मै भी तुझे छू लूं जरा

ऐ मोहब्बत तू जरा रोक जा
बैठ पास मेरे तू ,यूँ ना तू उठ के चली जा

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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