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वहां


वहां

बिखरा पड़ा है सामान मेरा अब उसे संभालू कैसे
उठकर जो कदम चले मेरे उसे मंजिल तक ले जाऊं कैसे
बिखरा पड़ा है सामान मेरा

कदर ना की मैंने होने पर किसी की भी अब तक
उस बेफिक्री भरे आलाम को अपने से दूर हटाऊँ कैसे
बिखरा पड़ा है सामान मेरा

क्यों रूठा मुझसे और कितना टूट और फुट वो गया
अपनी मस्ती में था ना सोचा उस दिल को मै भूल गया
बिखरा पड़ा है सामान मेरा

कभी किवाड़ दरवाजे खिड़की बोलती थी एक संग वहां
अब सन्नाटा उस राह पगडंडी गांव में जैसे कोई सो गया
बिखरा पड़ा है सामान मेरा

कुछ बिसरी याद अब तक पड़ी है उन आँखों के कोने में
इकठा करने गर जाऊं बस अपने को अब अकेला पाऊँ
बिखरा पड़ा है सामान मेरा

बिखरा पड़ा है सामान मेरा अब उसे संभालू कैसे
उठकर जो कदम चले मेरे उसे मंजिल तक ले जाऊं कैसे
बिखरा पड़ा है सामान मेरा

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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