मै और मेरा पहाड़
तेरी आगोश में इस तरह दफना दो मुझको तुम
पत्थर और मुझ में जरा सा भी कोई फर्क ना रहे
बुरंस के रंग से खिली गलों पर वो लाली हो तेरी
साली की सदा मुख पे जीजा के लिये जैसे गाली हो
इस छेड़खानी में गुजार देना उम्र मेरा यूँ ही मौला
दुसरा जन्म अगर देना तो इस धरा का ही वो पानी हो
काफल की मिठास इस तरह तू घुला देना मन मेरे
जीवन के पन्नों में वंहा लिखी तेरी मेरी कहनी हो
कंडली की तरह काँटों भरी मुसीबत जो पड़े तन मेरे
साग उसी का खाके गरीब के दिनों में गुजर बसर हो
मेरा पहाड़ा वो मेरा सब कुछ मेरा जन्म मरण से
सादगी से भरा प्रेम की तरह गंगा में सबका तर्पण हो
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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