अभी तो बहुत कुछ है
अभी तो बहुत कुछ है
करना हसिल मुझे ……२
जाने वो कैसा पथ होगा
जिस पे चलना है आखिर मुझे ……२
अभी तो बहुत कुछ है................
आशा निराशा में जंग ऐसी लगी हुयी
छाने ना पाये मन मेरे अंधेरा तुझे
उस उजाले को है पाना मुझे
प्रकाशित करना है हर छोर को
अभी तो बहुत कुछ है................
अगर मगर के इस खेल में
निकल ना जाये ये वक़्त तेरा मेरा
नूतन नया सवेरा सदा आता यंहा
शीघ्र कर गया वक़्त ना आएगा फिर यंहा
अभी तो बहुत कुछ है................
सांसों का क्या है भरोसा
टूट जाये जाने वो किस मोड़ पर
बन जा कोई नयी कहानी यंहा
छूट जाये सदा तेरी निशानी इस जहाँ
अभी तो बहुत कुछ है................
अभी तो बहुत कुछ है
करना हसिल मुझे ……२
जाने वो कैसा पथ होगा
जिस पे चलना है आखिर मुझे ……२
अभी तो बहुत कुछ है................
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http:// balkrishna_dhyani.blogspot.com
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित
बालकृष्ण डी ध्यानी
0 टिप्पणियाँ