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वीरानों से इश्क हुआ


वीरानों से इश्क हुआ

वीरानों से इश्क हुआ
आवारगी बस अब मेरी महबूबा है
बस इतनी सी हो गयी मुझ से खता
दो गज जमीन भी अब हमसे खफा है
वीरानों से इश्क हुआ

इश्क मेरा ना आसान जितना झुठलाना तेरा
तमन्नाओं पर अब किस का जोर रहा है
फरमानों को अब किस ने यंहा सुना है
चिता पर भी ना जो अब तक जल सका है
वीरानों से इश्क हुआ

अरमानों के वीरानों में ना ऐसे आवाज लगा
ऐसे ना मुझे अब तू पीठ से बुला
अनसुना सा मौसम बिफरा यंहा पड़ा हुआ है
तेरा ना कोई जो यंहा पर अब आके बसा है
वीरानों से इश्क हुआ

उड़ रही है धूल जल रहा है धुँआ
अब तो यंहा वहां ना जाने कहां कहां
सकून वो मन तन जब कभी था बेचैन
अब तो वीरान ही बन बैठा मेरा मधुबन

वीरानों से इश्क हुआ
आवारगी बस अब मेरी महबूबा
बस इतनी सी हो गयी मुझ से खता
दो गज जमीन भी अब हमसे खफा है
वीरानों से इश्क हुआ

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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