वो रोते रहे ,वो चलते रहे
वो रोते रहे ,वो चलते रहे
जर-जंगल-जमीन से वो कदम अकेले होते रहे
वो रोते रहे ,वो चलते रहे
रात गयी ,सुबह आयी
अपने बिराने साये हम से वो कम होते गये
वो रोते रहे ,वो चलते रहे
कुछ नही बदला इधर ना उधर
बस नये पत्ते आये सूखे पत्ते उड़ते गये
वो रोते रहे ,वो चलते रहे
बस बची चार कंधे दो बांस की चारपाई
तेरा होगा बंदोबस्त वहां मेरा यंहा पर तैयार है
वो रोते रहे ,वो चलते रहे
इतना ही ठिकाना लिखा था बस तेरा और मेरा
मै अपनों तक ही रह गया और तू पराया हो गया
वो रोते रहे ,वो चलते रहे
वो रोते रहे ,वो चलते रहे
जर-जंगल-जमीन से वो कदम अकेले होते रहे
वो रोते रहे ,वो चलते रहे
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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