एक मन था मेरा
एक मन था मेरा
साथ मैं उसके यूँ चलते चला हूँ
जैसे चलता चला साथ मेरे
सदा ये जमीन ये आसमा
बढ़ते रहे कदम मेरे
ना जाने किस ओर किस जगह में
जहां भी जाऊं मै ऐसे
तू मुझे मिले हर पल हर जगह में
ना मिला पाया एक भी ऐसा कोना
मुझे ना मौजूद हो तुम वहां पर
अपने अंदर वजूद में जब झाँक मैंने
तुम मिले मुझे वहां भी
फिर रहा हूँ तुम्हें साथ लेकर
अनजान सी महफ़िल और मंजिल में
तू दे रही हो पूरी तरह साथ मेरा
हर कदम मेरी हर मुश्किल में
एक मन था मेरा
साथ मैं उसके यूँ चलते चला हूँ
जैसे चलता चला साथ मेरे
सदा ये जमीन ये आसमा
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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