उन बूढी आँखों ने देखे थे
उन बूढी आँखों ने देखे थे
सपने हजार तेरे लिये
किया था प्यार तुझ से बेशुमार
अपने को गिरवी रखते हुये
सोना खाना पीना तेरा
भूखे पेट रहा वो और निवाला खिलाया तुझे
तू हँसता रहे सदा खुश रहे
अपने आँसूं और दर्द छुपाया तुझ से
उन बूढी आँखों ने देखे थे
सपने हजार तेरे लिये..................
कतरा कतरा जोङता रहा वो
तेरे लिये सब कुछ नया बंनाने के खतिर
अपनी पुरानी फटी कमीज सलवार
छुप के से खुद वो सिलता रहा
उन बूढी आँखों ने देखे थे
सपने हजार तेरे लिये..................
अपनी पुरानी बेल्ड से
अपनी बड़ी दाढ़ी को खरोंचता रहा
साबुन के बिना वो
पत्थर घिस कर अपन तन धोता रहा
उन बूढी आँखों ने देखे थे
सपने हजार तेरे लिये..................
उसकी कुर्बानी का सिला
तूने क्यों कुछ ऐसा दिया
अकेला छोड़कर तोड़कर उसे
अपना आशियाना सजाने में लगा
उन बूढी आँखों ने देखे थे
सपने हजार तेरे लिये
पर एक सपना भी तू ना
उन आँखों के लिए देख पाया
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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