आ गये फिर याद
आ गये फिर याद
दिन वो लड़कपन के
गिरने लगी वही बरसात
उन यादों के उस समंदर से
आ गये फिर याद
दिन वो लड़कपन के
चिर यौवन ने पाठ पढ़ाया
सुंदरता ने अपने करीब ले जाकर
कली तब जा कर फूल बनी थी
जब भौरों ने उसे रिझाया
आ गये फिर याद
दिन वो लड़कपन के
मादकता ने रूप निखारा
मेला हुस्न का यूँ सजाकर
प्रेम ऊर्जा का संचार हुआ था
उन दो नयनों को तब मिलकर
आ गये फिर याद
दिन वो लड़कपन के
कुछ लिखा था हम ने मिलकर
प्रणय के उस कोरे कागज पर
शरमाई सकुचाई-सी खड़ी वो
अब भी इस बूढ़े मन के दरवाजे पर
आ गये फिर याद
दिन वो लड़कपन के
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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