अब भी बहार का मौसम है
अब भी बहार का मौसम है
पतझड़ को किनारे तू किये जा
काँटों से भरी रची है ये जिंदगी
फूलों की तरह तू जिये जा
अब भी बहार का मौसम है
पतझड़ को किनारे तू किये जा
खुद को ना रोक तू ऐसे
बहती नदी जैसे वैसे तू बहते जा
अब भी बहार का मौसम है
पतझड़ को किनारे तू किये जा
बंद कर अपने को तू क्यों रहता है
खुल के इस हवा संग तू उड़े जा
अब भी बहार का मौसम है
पतझड़ को किनारे तू किये जा
रोकना, लोग कहते हैं मौत खड़ी
मौत को भी तू अब जीना सिखाये जा
अब भी बहार का मौसम है
पतझड़ को किनारे तू किये जा
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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