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नाकमियां कोशिशें बढ़ती हैं



नाकमियां कोशिशें बढ़ती हैं

नाकमियां कोशिशें बढ़ती हैं
लड़ लड़ के सांसे जीना सिखाती हैं
नाकमियां नाकमियां ……

पहाड़ों की नदियां सुनो लोरियाँ सुनाती हैं
अपने और अपनों का दर्द चुपचाप सहला जाती हैं
नाकमियां नाकमियां ……

परछाइयाँ हर पल साथ वो निभाती हैं
अँधेरे उजाले से कैसे निभाना बता जाती हैं
नाकमियां नाकमियां ……

मोम पिघलती है तन्हा अकेले रोती है
पतंगा सौ बार समा के लिये अपने को खो देता है
नाकमियां नाकमियां ……

एक अकेला दिल ना जाने कितनी बार धड़कता है
हर वो धड़कन ज़िंदा है ऐ अहसास दे जाती है
नाकमियां नाकमियां ……

बात लंबी ना हो तो उसे ज्याद खींचना अच्छा नहीं
थोड़े में जो अपने को सिमटले उससे सच्चा अब कोई नही
नाकमियां नाकमियां ……

कह जाती है वो आँखें बातें अब कई अनकही सी
लिखता रहता हूँ जो महसूस करता हूँ इस जमीं से
नाकमियां नाकमियां ……

आसमानों में उड़ता रहता हूँ मैं अपने ही ख्यालो में
हरदम मेरे वजूद को रखता हूँ मै अपने पायदानों में
नाकमियां नाकमियां ……

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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