फिर याद आयी तुम
फिर याद आयी तुम
फिर साहिल से लहर टकरा गई
अनुस्मरण कर उस याद को
इस दिल में हलचल फिर हो ही गई
फिर याद आयी तुम
सांसों ने रफ़्तार पकड़ी
नब्ज भी अचनाक है दौड़ी आज
दिल की घडी धक धक कर
सीने की धड़कन कर गई बैचेन आज
फिर याद आयी तुम
अब भी उसके लिये मचलता है
अकेले में जब भी उसके लिये धड़कता है
उसके ही ख्याल आँखों में लिये
अकेले अकेले उसके लिये आहा भरता है ये
फिर याद आयी तुम
बारिश के मौसम में भीगा मैं
या फिर सर्द रातों की वो मेरी तड़प
ग्रीष्म की वो ले आये मेरे लिये बहार
चारों मौसम में उसका बस मेरे लिये प्यार
फिर याद आयी तुम
फिर याद आयी तुम
फिर साहिल से लहर टकरा गई
अनुस्मरण कर उस याद को
इस दिल में हलचल फिर हो ही गई
फिर याद आयी तुम
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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