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चित्र में मैंने खोजा की जहाँ बस खाली नजर आया


चित्र में मैंने खोजा की जहाँ बस खाली नजर आया

कभी अपना लगता है कभी वो अब पराया लगता है
ये चार दिनों का मेला बस अब एक सपना लगता है
कभी एक दिन वो मेरा था एक दिन वो कभी तेरा था
बचे वो बाकी दो दिन बस अब यंहा व्यापार लगता है

प्रणाम
आप का अनुज
बालकृष्ण डी ध्यानी
बालकृष्ण डी ध्यानी
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