ADD

अब बस दर्द वो बहता है




अब बस दर्द वो बहता है

फिर मिले
हम यहीं कंही
यूँ ही
बिखरी कहानियों में
गुल खिले
फिर कंही यहीं
इन हसीन वादियों में

पानी के बुलबुले से
हवाओं के संग उड़ा चले हैं
ओस सा बिछा गया है
पत्तों पर साफ़ सा
अब वो दिख गया है

सुर गूंज ने लगे हैं
पर फड़फड़ाने लगे हैं
माटी की सौंधी सुंगध लिये
कोई याद आने लगा है
मन मुस्कुराने लगे हैं

बिछोह की पीड़ा
वो ग़म असहनीय है
किस्सों कहनी सा
अब बस दर्द वो बहता है
पहाड़ के पानी सा

जवानी तेरी
बस इतनी कहानी है
ना तेरी कोई जुबानी है
खार समंदर
बस तेरी निशानी है

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित
बालकृष्ण डी ध्यानी
Reactions

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ