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खबरें टूट रही हैं.....


खबरें टूट रही हैं.....

खबरें टूट रही हैं.....
आँख के आँसूं ....वो .... लूट रही हैं....

टूटती दीवारें ,टूटती जा रही है
आगे बनती सड़कें पीछे छूटती जा रही है
समय के साथ सांसें रूठ रहीं है
भरोसे की डोर कहीं छूट-टूट रही है

खबरें टूट रही हैं.....
आँख के आँसूं ....वो .... लूट रही हैं....

टूटती-बिखरती उन यादों को
कितना संभल कर हमने अब तक रखा था
आंच आयी कांच पर वो टूट गयी
दरकते रिश्ते अब तुरंत मुंह खोल गये

खबरें टूट रही हैं.....
आँख के आँसूं ....वो .... लूट रही हैं....

जन-सुनवाई आस खोती रही
तारीखों तारीखों के बीच खुद को लपेटती रही
उफनती नदियां सुन ले कुछ कह गयी
भूकंप आपदा का और हम कितना झेले ग़म

खबरें टूट रही हैं.....
आँख के आँसूं ....वो .... लूट रही हैं....

सुने होते गांव अकेले में बतियाने लगे
अपने आप खुद से ही वो अब झुंझलाने लगे
ना जाने किस बात के आघात से वे घबराने लगे
नींद भी अपनी वो अपनों के लिये चुराने लगे

खबरें टूट रही हैं.....
आँख के आँसूं ....वो .... लूट रही हैं....

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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