बोल रहें हैं बोल सभी
बोल रहें हैं बोल सभी
खोल रहें हैं खुद की वो पोल सभी
करके बिराना अपनों को ही
तौल रहें वो माल सभी
बोल रहें हैं बोल सभी
कैसी करनी है कैसी कथनी है
असमंजस में हूँ माँ तू कैसी जननी है
काटों पे भी आती बहार कभी
ना समझ सका तू उसका प्यार कभी
छोड़ जा रहा अपना सब कर के बिराना
चला गया तू कहाँ कहाँ तेरा अब ठिकाना
लगता है आयेगी ना तुझे अक्ल दाड कभी
कैसे तू सोचेगा कैसे करेगा तू अपनों का विचार कभी
जिस धरती में जन्मा लिया जिसने तुझे है पाला
करके अनाथ बेसहार तू दूर अब उस से कहाँ चला
तू ना समझा सका उसे ना तू कभी समझ पायेगा
तेरा जीवन लगता है देव भूमि बिना व्यर्थ ही यूँ उड़ जायेगा
क्या मै बोलों और कैसे मै पोल खोलों
तेरे दिल के दरवाजे बैठा उस बंद दर को कैसे खोलों
गर अकेला अगर ये रह जायेगा तू भी क्या पायेगा
अनंत हीन सीमा चक्र में तू फिर फंस जायेगा …… ३
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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