ज़िन्दगी में
कामयाबी हो हासिल
ना जाने किस मायने में
रूठे अपने ,टूटे सपने
सब रहे अपने अपने से
ज़िन्दगी में
सब मंजिलें खोजने में
अपनी उम्र गुज़ार देते हैं
आता क्या हिस्से में
बस अफ़सोस जता देते है
ज़िन्दगी में
कमज़ोर आदमी है
कमज़ोर उसका सच
अधूरी रहती वो कहनी
अधूरा है उसका ये मंच
ज़िन्दगी में
ये कोई कहानी नहीं,
एक वो देखा सपना था
आधा है अब भी वो
अब भी वो अधूरा सा...
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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