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तो अच्छा था


तो अच्छा था

कोई मुझे अपना कह देता तो अच्छा था
अनाथ को भी नाथ मिल जाता तो अच्छा था

फ़िक्र जुड़ी जिंदगी से तो समझो आगे धोखा है
अगर ये बात पहले समझ आ जाती तो अच्छा था

मिले सब के सब अपने लेकिन सब के सब वो पराये थे
ये अक्ल पहले अगर आ जाती तो अच्छा था

क्या जीत है क्या हारा है मालुम ना था इस ज़माने को
खुशियाँ अगर दोनों में ही मिल जाती तो अच्छा था

एक आँख रोये एक हँसे जिंदगी के इस फ़साने में
अगर माँ की दो आँखे पढ़ लेता तो अच्छा था

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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