कुछ तो है वो
कुछ तो है वो
साथ मेरे चलता है
कोई तो है वो
आस पास मेरे रहता है
कुछ तो है वो...... कुछ तो है वो
खोजों उसे कैसे.... ना वो दिखता है
उसके पास होने का अहसास मगर रहता है
नजरों से नही .....जो कभी मिलता है
आँखों को क्यों ऐसा धोखा होता है
छूट जाता सब मगर
वो साथ साथ चलता है
सुख हो या दुःख हो
वो मेरे आस पास रहता है
कुछ तो है वो...... कुछ तो है वो
खोल ले मन की आँखें अपनी
बोल ले दो घड़ी खुद से अपने
कोई ना सुनेगा जब तेरा
हर पल वो तेरा मगर सुनता है
कुछ तो है वो
साथ मेरे चलता है
कोई तो है वो
आस पास मेरे रहता है
कुछ तो है वो...... कुछ तो है वो
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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