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इन इतने सारे रंगों में


इन इतने सारे रंगों में

दोष किसे दें अब सब अपने ही हैं
देश पराया है ये सब ठीक सही
कौन मिलेगा किस को कहाँ पर
ये बतलाना जतलाना ना ठीक सही
इन इतने सारे रंगों में ,मै बेरंग ही ठीक सही ……२

आँखों को हो गया है धोखा
छिन गया है शायद मुझसे ही मौका
ना मिले या मिले ये अब ये उम्मीद ही नहीं
पानी था पानी सा वो रंग बह गया है
इन इतने सारे रंगों में ,मै बेरंग ही ठीक सही ……२

खारा खारा सा अब महसूस हुआ है
अंतर मन ने मेरे जब उसे चखा है
अहसास बचा भावना अब भी छुपी थी
दिल ने संभाला रखा था आँखों ने खो दिया है
इन इतने सारे रंगों में ,मै बेरंग ही ठीक सही ……२

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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