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जीवन में संगीत


जीवन में संगीत

ऐसा कोई गीत ना हो
जिस में मेरा महबूब ना हो
प्रीत की होगी वो अपूर्ण परिभाषा
जब तक जीवन में संगीत ना हो

बज उठे झंकार पत्तों पत्तों से
गाने लगे मल्हार वो अपने अपनों से
राग सरगम का हो जब ऐसा मधुर संगम
सुर की नदियाँ बहे हरदम माध्यम माध्यम

कल कल नसों में हो वो जब ऐसा स्पंदन
प्रेम अग्न की उठे वो पल पल मीठी चुंबन
जब सहा ना जाये विरहा का वो अकेलापन
विरहा गीत भी तब अकेले वो छेड़े मन

मन का भेद है ये मन का खेल
रचा संसार जिसने उसने ही बसाया है ये मेल
झुक झुक चली जब ये जीवन नाड़ी
सात अक्षरों की तब चली है ये सुंदर रेलगाड़ी

बस ऐसे ही महके गीतों की ये बेल
मेर महबूब से अब तो हो मेरा मेल
पूर्ण करो मेरी अब ये अभिलासा
मेरा मन कब से है प्यासा

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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