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बोई मेरी मेरी बोई



बोई मेरी मेरी बोई

बोई किस को कहते हैं
जान ना पाया मैं
अपनी भूमि को ही
ना पहचान पाया मै

बोई मेरी मेरी बोई तू ना रोयी
ये निर्भगी का बाना आँसूं ना चुलैई

दर्द ही दर्द बिछा है
काँटों पथ पर वो सदा चला है
चुबा कांटा उन पैरों का
ना निकाल पाया मै ....दर्द तेरा
ना पहचान पाया मै

बोई मेरी मेरी बोई तू ना रोयी
ये निर्भगी का बाना आंसूं ना चुलैई

भागता रहा छुपता रहा मै
अपने ही कर्म से लुकता रहा मै
सुख ना दे पाया तुझको कभी
दुःख में तेरा साड़ी का छोर ढूढ़ता रहा मै .. .कर्म मेरा
ना पहचान पाया मै

बोई मेरी मेरी बोई तू ना रोयी
ये निर्भगी का बाना आंसूं ना चुलैई

माफ़ करदे और्री एक त्याग कर दे
बोई आपरी जिकोड़ो मा एक ओर ढुंग रख दे
नि ऐ स्कलू मी अब वापस तेरे पास
ये मेर भगवंत मेर तू तृपर्ण करदे .... जिंदगी अपनी
ना पहचान पाया मै

बोई मेरी मेरी बोई तू ना रोयी
ये निर्भगी का बाना आंसूं ना चुलैई

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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