दूर नील गगन में
चमका तारा
दूर नील गगन में
देख मैं ना उसे देख पाया
अंधियारी रात में
घिरे नभ में काले बादल
देख मैं ना उसे छाँट पाया
चमका तारा
दूर नील गगन में............
इक दिन आयेगा
तू जब सोचेगा
अपने अंदर का
तू जिस दिन बोलोगे
कलयुग की इस लोलुपता में
क्या सच्चा , क्या झूठा है
तू कब तक तौलेगा
चमका तारा
दूर नील गगन में............
जीवन-मृत्यु के इस फेरे में
हर पल सुख है
दुःख यंहा कौन चाहता है
सुन्दर दृश्यों
की ये झांकी अब तो
देखो तो अब लगता सपना है
चमका तारा
दूर नील गगन में............
रहता नही
कोई पास सदा
सुन ले पीड़ा तू हर पल
चिंतन में ऐसे लगा रहा
कहने लगा फिर भी उसका मन
दूर हुआ जब खुद का वो अंतर्मन
तनहा रहने की वो चाहत में
खिलने लगा फिर भी देखो
वो वीराना मधुबन
चमका तारा
दूर नील गगन में............
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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