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कुछ लिखने बैठा हूँ



कुछ लिखने बैठा हूँ

कुछ लिखने बैठा हूँ
मै अपने पहड़ों पे ,अपने पहड़ों पे
इन खूबसूरत नजारों पे
कुछ लिखने बैठा हूँ

चल ले चल कलम पकड़ के मेरा हाथ अभी
ले जा उड़ के दूर मेरे सपनों अपनों के पास कभी
मेरे अहसासों को पहुंचा दे उनके पास अभी
मै भी बेचैन हूँ तब से जब से छूटा उनका साथ सभी

आती है याद तेरी भर के आँखों में
रूलाती है तू मुझे सिसकते हुये बाहों में
बैठ हूँ दूर बहुत दूर ओझल तेरी निगाहों से
धड़कती साँस कहे तू अब भी मेरी बाँहों में

रह नही सकते दूर तुझ से लेकिन मजबूर सभी
ये बीते पल कहते हैं आयेगा अपना भी कल कभी
महकेंगे फिर फूल खिलेगा फिर मेरा पहाड़ सभी
सोच लेंगे जब सब अपने दिल से एक बार कभी

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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