मेरा उत्तराखंड दिखाऊंगा
मैं अपने पहड़ों पे गीत लिखता जाऊंगा
इन नजारों में तो पल पल मरता जाऊंगा
रात भर जाग कर उस गीत को सजाऊंगा
मेर इस बने गीत को मेरा पहाड़ा गायेगा
सुबह होते ही उस गीत को मै गाऊंगा
बहती नदिया धार संग में तो बहता चला जाऊंगा
कभी आरु तो कभी सेब डाली में लह लहाऊंगा
कभी नारंगी खटी मीठी मीठास में घुलता जाऊंगा
सड़क के मोड़ संग में तो मोड़ता जाऊंगा
मेरी देवभूमि को मै अब अपनो को दिखाऊंगा
बद्री-केदार के चरणो में मै अब झुक जाऊंगा
सभी देबी-देब्तों के मंदिर में घंडियाल बजाऊंगा
डंडा कंठो के इन उजाड़ों में मै अब पाया जाऊंगा
काफल किन्गोड़ा हिसलों दाणी से में ललचाऊंगा
अपने खेत खलिहान में अब अन्न बन जाऊंगा
हरे भरे जंगलों हिलांस घुघूती बन उड़ा जाऊंगा
ढोल दामो गढ़वाली गीतों में मै झूम जाऊंगा
कौथिक तुझे घुमाने तिमल सैण ले जाऊंगा
माँ भगवती बालकुंवारी के तुझे मै दर्शन करूंगा
इसी बहने तुझे पिंगली झलेबी बाल मिठाई खिलाऊंगा
आ चल तुझे मेरे गाँव गांवालों से मिलाऊंगा
बड़े बुजर्गों का असीस पा कर मै तर जाऊंगा
बांदों में बांद नखर्याली बांद से तुझे मिलाऊंगा
चल इस गर्मी में तुझे मै मेरा उत्तराखंड दिखाऊंगा
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित
बालकृष्ण डी ध्यानी
0 टिप्पणियाँ