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उसके दर पे मैं अब भी


उसके दर पे मैं अब भी

अभी अच्छा नहीं लगता
उसको मेरा उसके दर पे जाना
अभी अच्छा नहीं लगता

कभी वो भी इन्तजार करते थे मेरा
अब कहते मुझे वो ना आने को
अभी अच्छा नहीं लगता

मै भी अब मना करता हूँ
अपने को ही उसके दर पे जाने को
अभी अच्छा नहीं लगता

आदत अब पड गयी इन क़दमों को
अब कैसे रोको उन्हें वहां जाने से
अभी अच्छा नहीं लगता

अब भी खिंच देती है तेरी यादें मुझे
पर वो भुला बैठे हैं मुझे ज़माने से
अभी अच्छा नहीं लगता

मैं उन्हें बेवफा भी नहीं कह सकता
जो अपनों के लिये ही फ़ना हो गये
अभी अच्छा नहीं लगता

बस चल देते दो कदम और लौट आते हैं
ये दिलासा अब दिल को सकून दे देता
अभी अच्छा नहीं लगता

अब ये उम्र का पड़ाव और मै अब भी
बस अपने से अपने में ही उसके दर घूम आता
अभी अच्छा नहीं लगता

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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