ADD

पहाड़ भी अब फिर बुलायें


पहाड़ भी अब फिर बुलायें

लो फिर चलने लगी हैं हवायें
पहाड़ भी अब फिर बुलायें
मुसफ़िर चल अपने घर को
अपने घर में ही अब चैन आये
लो फिर चलने लगी हैं हवायें ..........

तुझे छोड़ ने के वक्त ,मुझे ऐसा लगा
जैसे कोई दीवाने का हो ,सब लूट गया
कैसी ये मज़बूरी दे दी उसने इतनी दुरी
एक जान को उसने क्यों जुदा कर दिया

पल पल वो याद आये
हर पल अब वो ही पुकारे ये ....
लो फिर चलने लगी हैं हवायें
पहाड़ भी अब फिर बुलायें

सुनहरी याद सा वो मेरे दिल मे बसा
दूर हूँ उससे मै पर ना हूँ मै जुदा
मै एक बहती नदी वो समंदर मेरा
तुझ से जुदा होकर भी कैसे हूँ मै जुदा

संग संग वो साथ आये
हर पल अहसास जगाये ये
लो फिर चलने लगी हैं हवायें
पहाड़ भी अब फिर बुलायें

एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित
बालकृष्ण डी ध्यानी
Reactions

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ