खाव्बों के आईने में
खाव्बों के आईने में
हार ने तोड़ दी सारी दीवारें
बस एक ठेस लगी और
सारा सब चकनाचूर हुआ
गुस्सा फूटा लोगों का
आरोपों का तब दौर शुरू हुआ
अपनों का ही अपनों पे
क्यों कर ये मतभेद हुआ
हार में जीना सीखो
जीत को पढ़ना सीखो
रोको नही तुम ऐसे बहको
नित आगे बढ़ना सीखो
सपना फिर सजा लो
अपना फिर उसे बना लो
चूक जो हुयी है उसे सुधारो
जीत का फिर परचम लहरा दो
एक उत्तराखंडी
बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/
में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित
बालकृष्ण डी ध्यानी
0 टिप्पणियाँ