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अब वैसा प्रेम मिलेगा कहाँ



अब वैसा प्रेम मिलेगा कहाँ

लिखे थे जो खत मैंने तुमको
क्या तुमको वो अब भी याद है
हर पन्ने में था जिक्र तुम्हार
हर अक्षर में छुपी तुम्हारी याद है

वो पन्ना अब भी वो बोलता होगा
तस्वीर मेरी वो फिर टटोलता होगा
जो आँसूं उन पन्नों में टपके होंगे तेरे
उस अहसास से वो अब भी भीगे होंगे

थोड़े अस्त व्यस्त उसमें लकीरें आयी होंगी
किसी कोने पडी धूल उसने भी खायी होगी
तन्हाई को अकेले जब मेरी याद आयी होगी
उस धूल के झड़ते ही वो फिर लहराई होगी

अब पन्नों का वैसा मौसम कहाँ
दबे सिमंटे बस वो पुरानी यादों में ही जवां
तुरंत चाहिये सब कुछ इस वर्तमान युग में
उस भूतकाल से उसे अब वैसा प्रेम मिलेगा कहाँ

बालकृष्ण डी ध्यानी

देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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