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आँखें है आँखें क्यों बूंद छलका जाती


आँखें है आँखें क्यों बूंद छलका जाती
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आँखें है आँखें बूंद क्यों छलका जाती
खुशियां हो या गम क्यों वो रुला जाती

अब तो नये कोंपल,हरे हरे पत्ते गिर जाते हैं
ना करना ग़म गिर गयी जो सुखी पात्ती

किसको हो दर्द देख वो कौन रो देता है
दुख हो जाता गैर यंहा बस सुख अपना होता है

एक आँखें सदा भीगी भीगी यंहा मिलती है
तू बता कौन है जहाँ बस ममता बरसती

तेरी हस्ती ये दो आँखें ही बयां करती है
तेरी आँखों को वो गुदगुदाती या रुला देती है

आँखों की भाषा पढ़ना बहुत ही मुश्किल है
प्रेम करलो उसे दिल से फिर वो सरल हो जाती

कोई कहता है वो अहसासों का भरा पानी है
कोई कहता है वो तेरे सुख दुःख की कहानी है

आँखें है आँखें बूंद क्यों छलका जाती
खुशियां हो या गम क्यों वो रुला जाती
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बालकृष्ण डी. ध्यानी
बालकृष्ण डी ध्यानी
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