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पहाड़ पत्थर


पहाड़ पत्थर

खाली खाली सा देखने लगा
कुंठित मन अब खुद से कहने लगा है

दर्पण साफ़ और स्वच्छ था कभी मेरा
अब मैला सा वो क्यों लगने लगा है

तन्हाई तो बात करेगी जरूर मुझसे
लेकिन वो भी अब चुप रहने लगी है

देखों जिधर भी सन्नाटा सा पसरा है
वीराना वीराने से अब जा खटका है

पहले तो गुफ्तगू होती थी अक्सर
लेकिन वो मुलाकातें अब पीछे छूटी हैं

अब तो डर कहीं यूँ ना खो जाये हम
पहाड़ थे कहीं पत्थर ना हो जाये हम

एक उत्तराखंडी

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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