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मैंने देखे हैं शब्दों को उड़ते हुये



मैंने देखे हैं शब्दों को उड़ते हुये

मैंने देखे हैं शब्दों को उड़ते हुये
मेरे साथ उन्हें विचरते हुये
तितली के जैसे मचलते हुये
देख ले तू तू भी देख ले
सोच ले तू तू भी सोच ले

यहं वहां ना जाने कहां कहां
सोते भी और जगते भी
सपनों में कभी अक्समत ही मेरे पास
आ जाते हैं आ जाते हैं

मैंने देखे हैं शब्दों को उड़ते हुये
मेरे साथ उन्हें विचरते हुये
देख ले तू तू भी देख ले
सोच ले तू तू भी सोच ले

कभी ख़ुशी लेके कभी गम
फिरते रहते हैं अपने संग संग
उठते बैठते और चुपचाप शांत कभी मेरे साथ
आ जाते हैं आ जाते हैं

मैंने देखे हैं शब्दों को उड़ते हुये
मेरे साथ उन्हें विचरते हुये
देख ले तू तू भी देख ले
सोच ले तू तू भी सोच ले

रोते हुये या रूठे कभी
तकलीफों में कहीं घिरे कभी
लेके वो मंद मंद मुस्कान मेरे साथ
आ जाते हैं आ जाते हैं

मैंने देखे हैं शब्दों को उड़ते हुये
मेरे साथ उन्हें विचरते हुये
देख ले तू तू भी देख ले
सोच ले तू तू भी सोच ले

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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