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तू किधर चला रे



तू किधर चला रे

खुद को खोजों
खोजों खुद को
खुद को खोजों मै
कैसे खोजों
खोजों कैसे
कैसे खोजों ... ओं कैसे

सब कुछ अड़ा था
पेंच ये लड़ा था
मै बस खड़ा था
मै बस खड़ा था

बंद बंद सा सब
सब कुछ बंद सा
वो मन अँधेरे मेरे
कैसे तोड़ो
तोड़ो कैसे
कैसे तोड़ो ... ओं कैसे

कैसी कश्मकश
छुपा कश अपने में ही कहीं
उड़ रहा धुँआ जाने किधर
जाने किधर उड़ रहा धुँआ

मन बता रे
अंतर्मन में क्या छुपा रे
ना जानें ना
जानें ना
तू किधर चला रे

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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