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सब गड़बड़ है



सब गड़बड़ है

बोलों तो क्या बोलों
सब गड़बड़ है
मुख खोलों तो क्या खोलों
सब गड़बड़ है
पहाड़ में मेरे
सब गड़बड़ है
दिल्ली हैं माय बाप मेरे
सब गड़बड़ है
संस्कृति हो रही लुप्त मेरी
सब गड़बड़ है
डोबर चांटी के पुल पर
सब गड़बड़ है
आपदा राशि पर
सब गड़बड़ है
राजधानी मेरी
सब गड़बड़ है
टेहरी डैम है पर बिजली गुल
सब गड़बड़ है
पलायन है बीमारी
सब गड़बड़ है
१४ बरस नही रोजगारी
सब गड़बड़ है
आपदा की तैयारी
सब गड़बड़ है
खाली खाली गांव मेरे
सब गड़बड़ है
यंहा यौजना ही यौजना
सब गड़बड़ है
शिक्षा के क्षेत्र में
सब गड़बड़ है
ना बनी कोई पहाड़ी भाषा
सब गड़बड़ है
अब तक ७ मुख्यमंत्री
सब गड़बड़ है
जलते जंगल लूटते जंगल
सब गड़बड़ है
नदियों की खनन चोरी
सब गड़बड़ है
उच्च पद पर भर्ती
सब गड़बड़ है
आंदोलन ही आंदोलन
सब गड़बड़ है
देखो जिधर उधर
सब गड़बड़ है

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
http://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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