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मेरी मजबूरियों को मेरी नाकामियां ना समझो



मेरी मजबूरियों को मेरी नाकामियां ना समझो

मेरी मजबूरियों को मेरी नाकामियां ना समझो
कैद हूँ अपने में ही कहीं मुझे आजाद ना समझो

हर कदम जो आज उठा वो हजार सवाल करता है
अकेले मे ये साँस मुझे अब कितनी मौत मारती है

दूर बैठा हूँ सबसे ये कदम मेरे फिर भी चलते हैं
अंगारों पे झुलसे पावों के छाले मुझ से कहते हैं

तड़प है कुछ ऐसे तुझ को क्या बताओं वो मेरे जी
अल्फाज मेरे उस तड़प को ना पूरा कर सकेंगे जी

बहता है ये आँख का आँसूं अब इसे बह जाने दो
इसी बहाने दिल का गम मुझे हल्का कर जाने दो

मेरी मजबूरियों को मेरी नाकामियां ना समझो
कैद हूँ अपने में ही कहीं मुझे आजाद ना समझो

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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