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बंद कर के दरवाजों को



बंद कर के दरवाजों को

बंद कर के दरवाजों को
दिल क्यों बैठा आज अकेला
बंद कर के दरवाजों को

काले अंधेर क्या तू खोजे
लापता घर है मेरे लापता सवेरा
बंद कर के दरवाजों को

मन एक बस भागता घोड़ा
दौड़ा दौड़ा बस वो दौड़ा
बंद कर के दरवाजों को

हल्की एक आस किरण वो
कितने दुःख उसने पीछे छोडा
बंद कर के दरवाजों को

बंद में बंध अब गया हूँ ऐसे
दरवाज खुला पर लगा वो अब भी बंद सा
बंद कर के दरवाजों को

आती हर सुबह यंहा एक नया रूप लेकर
तू ना समझा ये तेरे आँखों का धोखा
बंद कर के दरवाजों को

अहसास ही सब कुछ है अब यंहा तो
स्पर्श मिला उसका वो मिल गया थोड़ा
बंद कर के दरवाजों को

बंद कर के दरवाजों को
दिल क्यों बैठा आज अकेला
बंद कर के दरवाजों को

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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