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मैंने रंग देखे लगे ,अपने पहाड़ों के


मैंने रंग देखे लगे ,अपने पहाड़ों के

मैंने रंग देखे लगे ,अपने पहाड़ों के
मुझे रंग बिखरे मिले ,अब अपने पहाड़ों पर

अब हरा रंग हर ओर सुखा पिला में घुला मिला
नीला रंग अब फिसले काले में सुखा गीला मिला

भूरा रंग खाकी संग अब तरसा प्यासा मिला
श्वेत संग नीला रंग बस निरंतर बहता मिला

लाल रंग ओढ़े अब तक बंध रखा है शीश पर
आँखों की पुतली का रंग क्यों इतना तान रखा है

भागती दौड़ती सफेद काली रेखाओं का जाल है
खोदे हुये सुरंगों में ये कौनसा रंग लबालब भरा है

रिक्त होते यौवन रंग आज अपने से मिट रहा है
खडहरों का मटमैला रंग चहुँ और क्यों उभरा है

मैंने रंग देखे लगे ,अपने पहाड़ों के
मुझे रंग बिखरे मिले ,अब अपने पहाड़ों पर

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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