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ना ये राहें हुयी ना ये मंजिल मेरे


ना ये राहें हुयी ना ये मंजिल मेरे

ना ये राहें हुयी ना ये मंजिल मेरे
फिर बहके कदम मेरे कहाँ और किधर चल दिये

कुछ सोचा था मैंने कुछ उसे समझा था क्या
पर नासमझ बन के बस कहाँ वो चलता रहा

सुख की चाह में ये जीवन दुःख में जलता रहा
वो सुख ना कभी मेरा हुआ ना वो दुःख मेरा हुआ

ना जाने क्या लेने देने आया था मै यंहा पर
बस लेने की सोच में मै यंहा देना भूल गया

ना ये राहें हुयी ना ये मंजिल मेरे
फिर बहके कदम मेरे कहाँ और किधर चल दिये

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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