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सोचा तो बहुत मैंने था मगर


सोचा तो बहुत मैंने था मगर

सोचा तो बहुत मैंने था मगर मै कुछ कर नही पाया
उस राह में मै भी चला मगर मंजिल पे पहुंच नही पाया
सोचा तो बहुत मैंने था मगर

बोलने वाले बहुत हैं पर सुनने वाला यंहा कोई नही पाया
सुनने की कोशिश के थी मैंने मगर मै बोल नही पाया
सोचा तो बहुत मैंने था मगर

एक लकीर है खिंच गयी वो तेरे मेरे अब दरमियाँ
मिटा देने के लिये मै आगे बढ़ा तो उसे और खींचा पाया
सोचा तो बहुत मैंने था मगर

चला था मै पहले जहाँ से खड़ा मिला आखिर में भी मै वहां
फिजूल रहा चलना मेरा क्या हुआ इतना जो सोच मै पाया
सोचा तो बहुत मैंने था मगर

बालकृष्ण डी ध्यानी
देवभूमि बद्री-केदारनाथ
मेरा ब्लोग्स
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बालकृष्ण डी ध्यानी
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